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  • कानपुर का दुर्भाग्य



    कभी कानपुर की हरयाली मन भा देती थी, इसके चारों ओर खेत, जंगल और हरियाली का साम्राज्य था

    घने प्राचीन पेड़ों पर से कोयल, तोते, गौरिया आदि पक्षियों की मधुर गीत गूंजते थे

    आनादेश्वर मंदिर पर चढे फूल पावन स्वच्छ जीवनदायनी गंगाजी में विसर्जित होते थे

    कानपुर का सौभाग्य था की कभी वहां पर नाना राव, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेषर आज़ाद, गणेश शंकर विद्यार्थी, सुभाषिनी अली, कप्तान लक्ष्मी सहगल आदि महान स्वतंत्रता सेनानी ने स्वतंत्रता की ज्योत जलाई व् अटल बिहारी बाजपाई जैसे राजनैतिक नेता ने देश को दिशा दी

    महान कवि नीरज,शिक्षाविद राम चन्द्र शुक्ल, श्याम सुंदर दास, पंडित अयोध्या नाथ शर्मा ने अपनी कर्मठता से कानपूर को शिक्षा, शिक्षण के क्षेत्र में विश्व की अग्रिम पंक्ति में खड़ा किया।

    वहीं दुर्भाग्य कानपूर का की आज राहजनी, लूटपाट, गबन, हत्या, अराजकता से कानपुर लज्जित है।

    जहाँ स्वतंत्रता से पहले लोग आजादी का पाठ्यक्रम पढने आते वहीं अब कानपूर में दूर दूर से विद्यार्थी शिक्षार्जन को आते हैं।

    दुर्भाग्य ये की अब कानपुर को शिक्षा की मंडी जाना जाता है।

    सरकारी विद्यालयों की बेहाल स्थिति का लाभ गैर सरकारी विद्यालयों ने उठाया और यह एक धन कमाने का माध्यम बन गया है।

    जहाँ कभी शिव मंदिर आनादेश्वर बाबा पर चढे फूल पावन स्वच्छ जीवनदायनी गंगाजी में विसर्जित होते थे, दुर्भाग्य कानपुर का, आज चमड़े की व्यवसाईयों ने इस अमृत धारा को विषाक्त कर सुखा दिया।

    कभी कानपुर की हरयाली मन भा देती थी, इसके चारों ओर खेत, जंगल, और हरियाली का राज्य था, दुर्भाग्य कानपुर का - आज खेत, जंगल, पेड़ काट काट कर पूंजीपतियों ने कंक्रीट के भद्दे जंगल खडे कर, पक्षियों को निराश्रय कर दिया, जहां कभी घने प्राचीन पेड़ों पर से कोयल, तोते, गौरिया आदि पक्षियों की मधुर गीत गूंजते थे, दुर्भाग्यपूर्ण कानपुर की ऐसी विगति की आज मोबाइल फोन के बेढब, खतरनाक मीनारों एवं खम्बों की जानलेवा तरंगों ने पक्षियों को कानपुर का साथ छोड़ने पर निर्विकल्प कर दिया।    

    विवाद का विषय उन्नति एवं आधुनिकरण नहीं, वरन, कानपुर की उपेक्षा व् सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक व् एनी सभी मानकों में गिरते स्तर को लेकर है।

    मात्र ईंटो, गारे की बेढब ढांचे बना देने से ही समाज का भला व् उन्नती नहीं होता। यह कानपुर से ज्यादा भारत के और कौन से नगर में चरितार्थ होगा।

    जब अंग्रेज़ गए तो कानपुर की आधारिक संरचना (infrastructure) उस समय विश्व का सबसे आधुनिक थी। कानपुर एक उद्योग प्रधान नगर था।

    औद्योगिक एवं व्यावसायिक गतिविधी का केंद्र जो पूरे भारत में कुछ ही नगरों में हुया करता था। खेत खलिहान से यहाँ का किसान पूरे देश प्रदेश का पालन करता था।

    कानपुर में बने उत्पाद अंग्रेजों द्वारा निर्मित रेलवे लाइन से बंबई, कलकत्ता, मद्रास, दिल्ली तक आसानी से पहुंचाए जाते थे।

    किन्तु दुर्भाग्य कानपुर का आज यहाँ का नागरिक अपने पेट का भरण पोषण की लिये दूसरे शहरों में पलायन करने को मजबूर है। नये वाहन तो आ गए किन्तु कानपूर के मार्ग टूटे फूटे व् जर्जर है। इनको ठोस रूप से बनाने वाली सरकार १९४७ से आज तक नहीं आ पाई।

    कानपुर का वायु मंडल विषाक्त है, दुर्भाग्य कानपुर का - आज तक कोई भी सरकार ऐसा कोई भी अधिनियम न् ला पाई की बढ़ते प्रदुषण पर अंकुश लग सके।

    यातायात का सुचारू रूप से संचालन् कर पाने मे कानपुर पिछड़ गया।

    जीवनदायनी गंगाके तट पर बसे होने के बाद भी घरों मे दूषित जल की आपुर्ति होती है, वो भी बहुत अल्प समय की लिए।

    बिजली की उपयुक्त आपूर्ति न हो पाने से यहाँ जन मानस त्रस्त है, और प्रदूषण असहनीय

    जो कानपुर की धरोहर थी उनको संजोने तो दूर उनका उन्नति, आधुनिकता व गतिशीलता ने नाम पर विध्वंस कर दिया गया है।

    दुर्भाग्य कानपुर का अब वहाँ मात्र खोखली बातों व झूठे वादे करनी वाले शेरेकालीन बसते हैं। अराजकता व् अव्यवस्था ही उसकी पहचान बन के रह गयी है।

    प्रभु राम दुबे

    editor@vpatrika.com

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